याद हूँ मैं
चेतना सिंह ‘चितेरी’तुम भूल गए हो या याद हूंँ मैं
अपनी धुन में खोए हुए रहते हो,
मन में आस लिए, तेरी राह में,
पलकें बिछाए बैठी रहती हूँ ।
कहीं खो गई हूंँ या याद हूंँ मैं
तुम्हारे दिल की बात, अब मुझ तक नहीं पहुंँचती,
न फोन, न मैसेज, इंटरनेट के दौर में भी,
हम बेगाने से लगते हैं,
बीते पल को याद करके दिल से लगा कर बैठी हूंँ।
तुम भूल गए हो या याद हूंँ मैं
आपाधापी में रहते हो,
खाई थी हमने क़समें, जीवन के सफ़र में साथ मिलकर चलेंगे,
टूटी हुई यादों के सहारे, आज भी
ज़िंदा हूंँ मैं
तुम भूल गए हो या याद हूंँ मैं
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- अभी कमाने की तुम्हारी उम्र नहीं
- अमराई
- आशीर्वाद
- कुछ तो दिन शेष हैं
- कैसी है मेरी मजबूरी
- कैसे कहूंँ अलविदा–2024
- कौशल्या-दशरथ नंदन रघुनंदन का अभिनंदन
- गौरैया
- घर है तुम्हारा
- चाँद जैसा प्रियतम
- जन-जन के राम सबके राम
- ज़िंदगी की रफ़्तार
- जीवन मेरा वसन्त
- दीपाली
- नूतन वर्ष
- पिता
- प्रसन्न
- बहे जब जब पुरवइया हो
- मछली
- महोत्सव
- मांँ
- मेरी कहानी के सभी किरदार स्वावलंबी हैं
- मेरी बात अधूरी रह गई
- मेरी ख़ुशियांँ, मेरे घर में
- मैं चेतना हूँ
- मोहब्बत की दास्तान
- याद हूँ मैं
- वक़्त
- शतरंज की चाल
- शिक्षा से ही ग़रीबी दूर होगी
- शून्य
- संघर्ष में आनंद छुपा है,/उसे ढूंँढ़ लेना तुम!
- सरगम
- हम अपनों के बिन अधूरे हैं
- हे संध्या रुको!
- कहानी
- स्मृति लेख
- चिन्तन
- किशोर साहित्य कविता
- आप-बीती
- विडियो
-
- ऑडियो
-