वक़्त

चेतना सिंह ‘चितेरी’ (अंक: 220, जनवरी प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

इस भागदौड़ की ज़िन्दगी में 
किसी के पास वक़्त नहीं, 
कुछ अपनों के लिए समय निकालें, 
वरना, 
ज़िन्दगी यूँ ही निकलती जा रही, 
हम अपनों के साथ वक़्त नहीं बिता पा रहे हैं, 
परिवार के साथ ख़ुशी से जिएँ, 
जो गुज़र जा रहा है, वह न फिर आनेवाला, 
उसे आंँखों में क़ैद कर लें, 
क्या खोया, क्या पाया, 
इसका हिसाब करने का वक़्त नहीं, 
अपना क़ीमती वक़्त निकाल, 
सुकून के पल उनके साथ बिताएँ, 
जिनकी आंँखों ने आपके लिए, 
देखे हैं सपने हज़ार, 
चेतना का वक़्त प्रकाश के साथ, 
मैं जीती हूँ, अपनी ज़िन्दगी! अपनों के साथ, 
आइए, कुछ वक़्त निकाल कर, 
आप हमारे साथ सुकून के पल बिताएँ, 
वरना, वक़्त निकल जाएगा, 
फिर हम कहेंगे-
इस भागदौड़ की ज़िन्दगी में, 
हमने ज़िन्दगी! जिया ही नहीं। 

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