वक़्त
चेतना सिंह ‘चितेरी’इस भागदौड़ की ज़िन्दगी में
किसी के पास वक़्त नहीं,
कुछ अपनों के लिए समय निकालें,
वरना,
ज़िन्दगी यूँ ही निकलती जा रही,
हम अपनों के साथ वक़्त नहीं बिता पा रहे हैं,
परिवार के साथ ख़ुशी से जिएँ,
जो गुज़र जा रहा है, वह न फिर आनेवाला,
उसे आंँखों में क़ैद कर लें,
क्या खोया, क्या पाया,
इसका हिसाब करने का वक़्त नहीं,
अपना क़ीमती वक़्त निकाल,
सुकून के पल उनके साथ बिताएँ,
जिनकी आंँखों ने आपके लिए,
देखे हैं सपने हज़ार,
चेतना का वक़्त प्रकाश के साथ,
मैं जीती हूँ, अपनी ज़िन्दगी! अपनों के साथ,
आइए, कुछ वक़्त निकाल कर,
आप हमारे साथ सुकून के पल बिताएँ,
वरना, वक़्त निकल जाएगा,
फिर हम कहेंगे-
इस भागदौड़ की ज़िन्दगी में,
हमने ज़िन्दगी! जिया ही नहीं।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- अभी कमाने की तुम्हारी उम्र नहीं
- अमराई
- आशीर्वाद
- कुछ तो दिन शेष हैं
- कैसी है मेरी मजबूरी
- कौशल्या-दशरथ नंदन रघुनंदन का अभिनंदन
- घर है तुम्हारा
- चाँद जैसा प्रियतम
- जन-जन के राम सबके राम
- ज़िंदगी की रफ़्तार
- जीवन मेरा वसन्त
- दीपाली
- नूतन वर्ष
- पिता
- प्रसन्न
- बहे जब जब पुरवइया हो
- मछली
- महोत्सव
- मांँ
- मेरी कहानी के सभी किरदार स्वावलंबी हैं
- मेरी बात अधूरी रह गई
- मेरी ख़ुशियांँ, मेरे घर में
- मैं चेतना हूँ
- मोहब्बत की दास्तान
- याद हूँ मैं
- वक़्त
- शतरंज की चाल
- शिक्षा से ही ग़रीबी दूर होगी
- शून्य
- संघर्ष में आनंद छुपा है,/उसे ढूंँढ़ लेना तुम!
- सरगम
- हम अपनों के बिन अधूरे हैं
- हे संध्या रुको!
- स्मृति लेख
- कहानी
- चिन्तन
- किशोर साहित्य कविता
- आप-बीती
- विडियो
-
- ऑडियो
-