मछली

चेतना सिंह ‘चितेरी’ (अंक: 219, दिसंबर द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

हे जलजीवन! 
तुम मस्त रहती हो अपनी दुनिया में, 
ना तुममें भेदभाव की भावना, 
तुम प्रेममयी हो! 
तालाब, नदियांँ, सागर की तुम रानी हो! 
अहं नहीं तुमको अपनी सुंदरता पर, 
रंग-बिरंगी दिखती हो! 
तुम तो मेरे मन को भाती हो, 
जल से करती हो! कितना प्रेम, 
यह हम सब ने देखा है, 
अलग होते ही प्राण निछावर कर देती हो, 
हे मछली! 
तुम ऐसे ही रानी नहीं कहलाती हो! 
तुम! एकनिष्ठ हो! 
हमें सच्चा प्रेम करना सिखाती हो! 
जग को देती हो सुंदर संदेश! 

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