पिता
चेतना सिंह ‘चितेरी’पिता का आशीर्वाद
हरे दूर्वा दल के जैसा;
ज़िन्दगी में कभी अपने को कमज़ोर न समझना,
थोड़े से में भी ख़ुश रहना।
पिता का दुलार
शहद के जैसा;
मातृभूमि रक्षा हेतु, धूलि तिलक कर,
वीर पुत्र को रण क्षेत्र में भेजते,
पिता की डाँट
नीम के जैसी;
हमारे अंतर्निहित दुर्गुणों को दूर कर देते,
पिता की फटकार
नारियल के जैसी;
हमें हर मुश्किलों से लड़ना सिखाते,
पिता का हृदय
सागर के जैसा;
हमारी बड़ी ग़लतियों को भी क्षमा कर,
नेक राह पर चलने को कहते,
पिता की सीख
चेतना प्रकाश जैसी;
जीवन के हर मोड़ पर
अर्थ से भी मूल्यवान।
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