अच्छा! तुम ही हो! 

01-06-2025

अच्छा! तुम ही हो! 

चेतना सिंह ‘चितेरी’ (अंक: 278, जून प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

अच्छा! तुम ही हो! 
लेती रहती हो, 
औरों से मेरी ख़बर। 
 
अच्छा! तुम ही हो! 
पूछती रहती हो
ग़ैरों से मेरा घर है किधर। 
 
अच्छा! तुम ही हो! 
रखती हो, 
जो मुझ पर नज़र। 
 
अच्छा! तुम ही हो! 
आती हो मेरे पीछे, 
जाता हूँ मैं जिधर। 
 
अच्छा! तुम ही हो! 
करती हो मुझसे प्यार, 
पर, कहने से डरती हो। 
 
अच्छा! तुम ही हो 
कर दो प्रेम का इज़हार, 
करता हूँ मैं इकरार
  
तुम्हारे सिवा कोई नहीं है, 
अच्छा है! तुम ही तुम हो! 
मैं भी करता हूँ स्नेह अपार। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
कहानी
स्मृति लेख
चिन्तन
किशोर साहित्य कविता
आप-बीती
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में