गौरैया

चेतना सिंह ‘चितेरी’ (अंक: 274, अप्रैल प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

मैं नन्ही-सी जान, 
ऊंँची है मेरी उड़ान। 
 
भला मैं कैसे? 
थक के हार जाऊंँ, 
मेरी भी बने पहचान। 
 
मेरी भी चाह है! 
नन्हे नन्हे क़दमों से चलती जाऊंँ, 
पंख पसारे गगन में उड़ती जाऊंँ। 
 
माना कठिन है दौर, 
कहीं नहीं है मेरा ठौर, 
 
रुकेंगे वहीं पे मेरे क़दम, 
जहांँ में होगा मेरा स्थान। 
 
मैं नन्ही-सी जान, 
चेहरे पर है मुस्कान। 

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