दीपाली

चेतना सिंह ‘चितेरी’ (अंक: 216, नवम्बर प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

अँधेरा है जीवन में, 
थोड़ा-सा उजाला मिल जाए, 
पल दो पल में, 
दुःख के बादल छट जाए, 
एक किरण हमको भी मिल जाए, 
थोड़ा-सा हम भी हँस लें। 
 
घर घर ख़ुशियाँ लेकर, दीपाली आई, 
हताश मन में एक उम्मीद जगाई, 
आ हम भी! एक दीप जला लें, 
मेहनत करके, क़िस्मत को बदल दें, 
थोड़ा-सा हम भी! जी लें। 
 
हमारे इरादे बुलंद हो, चट्टानों से भी टकरा जाएँ, 
आँधी तूफानों में भी अडिग रहें
हमारी जड़ें मज़बूत रहें, 
दीपाली जैसे; 
सब एक सूत्र में बँध जाएँ, 
थोड़ा–सा हम भी ख़ुशी से पर्व मना लें। 

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