बहे जब जब पुरवइया हो
चेतना सिंह ‘चितेरी’
बहे जब जब पुरवइया हो, पिया तोहरी याद आवे हो,
आ ई जा मिले हमसे मोरे सजनवा हो,
रहिया ताक़त हई हो, तोहरी सजनिया तोहरे लिए शृंगार करे हो,
बहे जब जब पुरवइया हो, जिया हमार मचल जाए हो।
जोगिया बनके अइजा हमरे नैहरवा हो,
तोहरी संगवा पोखरिया किनारवा घूमब हो सजनवा,
अंखियँ से अखियांँ मिलाईब सजनवा,
बहे जब जब पुरवइया हो, तोहरे से मिले के, तड़प जाई ला हो।
चिट्टिया पतिया लिखत बनत न हो,
सखी से कहि ला दिलवा के बतिया,
दिनवा में सौ बार तोहार नाम लेई ला हो,
मलिया बनके आई जा बलमा हो,
फुलवा चुने चलब तोरे संगवा हो,
बहे जब जब पुरवइया हो विरह क अगिया बढ़ जा ला हो।
अमवा के डलिया पे बोले जब कोयलिया,
जियरा हमार सुलग जा ला सजनवा हो।
बैठल हया तू इलाहाबाद में सजनवा,
तनिक खबरिया लेइ ला हमरे गऊँवा मुरादपुर क हो,
नीतू क अरजिया सुन ला हे देवेश!
अइजा हमरे बदलापुर में हो,
तोहरे बिन मनवा कहीं लगत ना बा,
चेतना सखी हमरे दिलवा क बतिया लिखत हईन हो,
बहे जब जब पुरवइया हो, हम बेचैन हो जाई ल हो।
पंछी बनके आई जा सजनवा हो,
तोहरे संग हमहुँ उड़ चलब खुले आसमनवा में हो,
हमसे मिले आई जा है सजनवा हो-2
बहे जब जब पुरवइया हो-2
सजन तोहरी याद आई हो-2
बहे जब जब पुरवइया हो।
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