बरसते मेघों की पुकार
चेतना सिंह ‘चितेरी’
बरस रहे हैं मेघ,
तड़प रही हूँ मैं,
भीगने को दिल चाहता है,
रोक न पाऊँगी ख़ुद को,
तुमसे मिलने को जी करता है।
आकर देखो अपने द्वार पर,
बाग़ों में मोर नाच रहा,
पक्षियों का कलरव हो रहा,
रोक न पाओगे ख़ुद को,
मुझसे मिलने को मन करेगा।
आनेवाला है सावन,
अभी से धानी चुनरिया ओढ़कर,
पलकें मैंने बिछा रखी हैं,
आना होगा तुम्हें,
न कोई अब बहाना चलेगा।
मेरा हाल सुनकर,
मेरे प्रियतम!
रोक न पाओगे ख़ुद को,
बरस रहे हैं मेघ
गरज रहा है बादल।
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