बरसते मेघों की पुकार

15-07-2025

बरसते मेघों की पुकार

चेतना सिंह ‘चितेरी’ (अंक: 281, जुलाई द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

बरस रहे हैं मेघ, 
तड़प रही हूँ मैं, 
भीगने को दिल चाहता है, 
रोक न पाऊँगी ख़ुद को, 
तुमसे मिलने को जी करता है। 
  
आकर देखो अपने द्वार पर, 
बाग़ों में मोर नाच रहा, 
पक्षियों का कलरव हो रहा, 
रोक न पाओगे ख़ुद को, 
मुझसे मिलने को मन करेगा। 
 
आनेवाला है सावन, 
अभी से धानी चुनरिया ओढ़कर, 
पलकें मैंने बिछा रखी हैं, 
आना होगा तुम्हें, 
न कोई अब बहाना चलेगा। 
 
मेरा हाल सुनकर, 
मेरे प्रियतम! 
रोक न पाओगे ख़ुद को, 
बरस रहे हैं मेघ
गरज रहा है बादल। 

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