घर है तुम्हारा

01-06-2023

घर है तुम्हारा

चेतना सिंह ‘चितेरी’ (अंक: 230, जून प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

संँभाल लो! घर संँवार लो! 
घर है तुम्हारा। 
 
बड़े नाज़ुक होते हैं दिल के रिश्ते, 
तुम इन्हें निभा लो! 
धीरे-धीरे बंद मुट्ठी में रेत की तरह फिसल जाएगा, 
मन में प्रायश्चित के सिवा कुछ भी नहीं बचेगा, 
अपनों से कैसा शिकवा? 
 
तुम्हारा है परिवार, 
तुम इसे बेगाना न समझो! 
 
एक दूसरे से प्रेम कर लो! 
चार दिन की है ज़िंदगानी, 
ख़ाली हाथ आए हैं ख़ाली है जाना
सब कुछ धरा पर रह जाएगा, 
 
सामंजस्य बिठा लो! 
मायके से ज़्यादा ससुराल है प्यारा, 
अपना के देखो तुम एक बार, 
प्रेम करते हैं सभी तुमसे, 
थोड़ा मान-सम्मान इन्हें दे कर देखो, 
मोम की तरह हृदय है इनका, 
तुम इनकी भावनाओं से खेलना छोड़ो! 
 
संँभाल लो! सँवार लो! घर है तुम्हारा। 

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