वही दाघ है

15-12-2023

वही दाघ है

अविनाश ब्यौहार (अंक: 243, दिसंबर द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

हाड़ कँपाने वाली ठंडी
पूस-माघ है। 
 
दूर्वा की अंगुली में
नग सी शबनम है। 
नाच रही धूप 
आँगन में छम-छम है॥
 
सच्चाई से है मुकर गया 
बहुत घाघ है। 
 
हैं घरों में हो रहीं
अलाव की बातें। 
हैं मटर की फली की
भाव की बातें॥
 
होगा बहुत उम्दा शिकारी
शेर-बाघ है। 
 
खेतों का मन जैसे
लग रहा शांत है। 
जोशीला पट्ठा भी
दिख रहा क्लांत है॥
 
ठिठुरन में दे ताप
चुनांचे वही दाघ है। 

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