टपक रहा घाम

01-01-2022

टपक रहा घाम

अविनाश ब्यौहार (अंक: 196, जनवरी प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

दिवस की शाखों से 
टपक रहा घाम।
 
धूप को पहना दिया है
पीला सा लहँगा।
कभी-कभी मौसम का
चक्र पड़ा महँगा॥
 
भेंट की लोगों ने
किया फिर प्रणाम।
 
चिड़ियों के गायन हैं
आँगन में गूँजे।
खाने को चूल्हे में
भर्ता है भूँजे॥
 
बैलों को सौंपा
जोतने का काम।
 
थकी-हारी सारा दिन
चल-चल कर धूप।
साँझ का दिखता
साँवला-सलोना रूप॥
 
है जाड़े के मुख पर
सूर्य का नाम।

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