बातों में मशग़ूल
अविनाश ब्यौहार
बार-बार तोड़े जाते हैं
ऐसे हुए उसूल।
भ्रम ने अब भ्रमजाल
बुना है।
पीड़ा बढ़ती
कई गुना है॥
इक दूजे की जेब कतर के
पैसा किया वसूल।
दुःख आते हैं
नयन भिगोने।
खजूर लगे
जैसे कि बौने॥
बाज़ारों में ठेले पर है
सजे हुए फल-फूल।
सपने भी
आयातित होते।
सूखी हुई
भावना ढोते॥
बहुत दिनों के बाद मिले हैं
बातों में मशग़ूल।
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