हमें पतूखी है

01-12-2021

हमें पतूखी है

अविनाश ब्यौहार (अंक: 194, दिसंबर प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

अगर है अथाह जलराशि
फिर भी नदिया सूखी है। 
 
भाव नहीं हैं तो
कैसा इजहार करें। 
सर्कस सा लगने वाला
संसार करें॥ 
 
ये व्यवस्था चीता जैसी
हुई भूखी-भूखी है। 
 
बाग़ हैं–पेड़ हैं
बुझी-बुझी हरियाली। 
चाँदनी दिख रही
अँधेरों से काली॥ 
 
उनकी रोटी घी चुपड़ी
मुझको रूखी-रूखी है। 
 
राजपथ की सड़कों पर
अनमोल कारें। 
झुग्गी और झोपड़ी
आरती उतारें॥ 
 
वे चाँदी की थाली में जीमें
हमें पतूखी है।
 
(पतूखी / पतोखी= पत्ते का दोना) 

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