बाँचना हथेली है
अविनाश ब्यौहारसच का कच्चा मकान
झूठ की हवेली है।
मनमोहक बोली तो
यहाँ की बघेली है॥
गंध की तितलियाँ
हैं बाग़ में उड़ीं।
आँधी की आशंका
रह-रह कुढ़ी॥
गणित हस्तरेखा का
बाँचना हथेली है।
भाग्य के कपोत
जैसे घायल पड़े।
हवाओं के पाँवों में
पायल पड़े॥
लहरें ज्यों घाट से
कर रही अठखेली है।
नयनों में बसा वन-
प्रांतर का रूप।
बूँद-बूँद टपकती
आँगन में धूप॥
रात और दिन का घटना
एक पहेली है।
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