बाँचना हथेली है

15-12-2022

बाँचना हथेली है

अविनाश ब्यौहार (अंक: 219, दिसंबर द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

सच का कच्चा मकान
झूठ की हवेली है। 
मनमोहक बोली तो
यहाँ की बघेली है॥
 
गंध की तितलियाँ
हैं बाग़ में उड़ीं। 
आँधी की आशंका
रह-रह कुढ़ी॥
 
गणित हस्तरेखा का
बाँचना हथेली है। 
 
भाग्य के कपोत
जैसे घायल पड़े। 
हवाओं के पाँवों में
पायल पड़े॥
 
लहरें ज्यों घाट से
कर रही अठखेली है। 
 
नयनों में बसा वन-
प्रांतर का रूप। 
बूँद-बूँद टपकती
आँगन में धूप॥
 
रात और दिन का घटना
एक पहेली है। 

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