महानगर के चाल-चलन 

15-03-2021

महानगर के चाल-चलन 

अविनाश ब्यौहार (अंक: 177, मार्च द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

महानगर के चाल-चलन 
औ रीति-रिवाज़ निराले।
 
यानि गाँव लगते हैं जैसे
माँ-बाप सरीखे।
सेवा-टहल बूढ़ों की करना
कोई न सीखे॥
 
हैं उजले-चमकदार दिन भी
लगते मुझको काले।
 
शहर का जन-जीवन
लगता है कि फ़ास्ट हो गया।
अगले चौराहे पर भीषण
बम ब्लास्ट हो गया॥
 
पैसों की ही दुनिया है
चाहे तो मौज उड़ा ले।
 
दो घड़ी चैन नहीं है
केवल भागम-भाग है।
समझ न आता लोगों में
द्वेष है या राग है॥
 
ज़ुल्म देखने वालों के
मुँह पर जड़े हुए ताले। 

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