लँगोटी है

15-05-2022

लँगोटी है

अविनाश ब्यौहार (अंक: 205, मई द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

हो जाएँगे पत्ते-पत्ते
डाली के पीले। 
 
सूखी नदिया-तालों
की है लाश पड़ी। 
तिनके-तिनके मुरझाए हैं
घास पड़ी॥
 
मंज़र देखा आसमान ने
नेत्र हुए गीले। 
 
लू से जलती हुईं हवाएँ
धधक रहीं। 
पेड़ों की शीतल छाँव है
दिखती नहीं॥
 
गर्मी के मारे अंजर-पंजर
होंगे ढीले। 
 
सूखे हुए अधर सी
नल की टोंटी है। 
गाछ के तन पर
मात्र एक लँगोटी है॥
 
हैं दिनकर आग उगलते
मुझको लगे हठीले। 

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