कालिख अँधेरों की

01-03-2022

कालिख अँधेरों की

अविनाश ब्यौहार (अंक: 200, मार्च प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

चेहरे पर रातों के
कालिख अँधेरों की। 
 
आँगन में उतरे हैं
धूप के पखेरू। 
उम्र ढली उड़ जाते
रूप के पखेरू॥
 
आई याद मेड़ों पर
खट-मिट्ठे बेरों की। 
 
मधुऋतु फ़सलों के
रंगों को चूम गई। 
अमराई में हवा-
बसंती झूम गई॥
 
पिटारी राज खोलती
साँप की-सँपेरों की। 

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