होंठ सिल गई

15-01-2022

होंठ सिल गई

अविनाश ब्यौहार (अंक: 197, जनवरी द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

कुहरा है दूर हुआ
धूप खिल गई।
 
खेतों में माटी के
ढेलों का दिन।
मकर संक्रांति जैसे
मेलों का दिन।।
 
लंबी पगडंडी –
सड़क से मिल गई।
 
जाड़े में काँप गए
दिन और रात।
पूछता अब माली
अलियों की जात।।
 
ड्योढ़ी की बातें सुन
खिड़की हिल गई।
 
सूरज का तेज
पड़ा फीका-फीका।
लगा रहे पंडित
त्रिपुंड का टीका।।
 
कड़वी सच्चाई है
होंठ सिल गई।

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