हरियाली थिरक रही
अविनाश ब्यौहार
जाड़ा क्या आया
फूल -पात
झूमने लगे।
हरियाली थिरक रही
बाग़ में -खेत में।
सीप-शंख-घोंघे
फैले हुए रेत में।।
सपने —
अधमुंदी पलकों को
चूमने लगे।
सन्नाटा तोड़कर है
वंशी बजी है।
तितली के हाथों में
मेंहदी सजी है।।
शहर एक मेला —
मेले में घूमने लगे।