हरियाली थिरक रही

15-01-2024

हरियाली थिरक रही

अविनाश ब्यौहार (अंक: 245, जनवरी द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)


जाड़ा क्या आया
फूल -पात
झूमने लगे।
 
हरियाली थिरक रही
बाग़ में -खेत में।
सीप-शंख-घोंघे
फैले हुए रेत में।।
 
सपने —
अधमुंदी पलकों को
चूमने लगे।
 
सन्नाटा तोड़कर है
वंशी बजी है।
तितली के हाथों में
मेंहदी सजी है।।
 
शहर एक मेला —
मेले में घूमने लगे।

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