तिनके का सहारा
अविनाश ब्यौहार
डूबते को है
तिनके का सहारा
रात में उजास।
जब ज़िक्र किया है
अंधकार का
दिन हो गया उदास॥
तीव्र हो आँधी तो
सब कुछ तहस-नहस करती।
और धूप दरीचे से
बेबात बहस करती॥
आँसू को
देखा जब-जब
सहम गया ठट्ठा-परिहास।
छुपी हुई बादलों में है
जैसे हरियाली।
झुरमुट और पेड़ों की
झोली बिल्कुल ख़ाली॥
है मुरझाया
पौधों सा लगता
ठीक यहाँ अहसास।
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