नमामि गंगे
वेद भूषण त्रिपाठीनमन है माता सुता भगीरथ
गोमुख से चलीं बढ़ीं पर्वत शृंगे
हे मातृ गंगे नमामि गंगे
नमामि गंगे! नमामि गंगे!
श्रद्धानत हो मानव जग का
रहे स्वच्छ निर्मल जल गंगे
हे मातृ गंगे नमामि गंगे
नमामि गंगे! नमामि गंगे!
संकल्पित हो मानव जग का
अप्रदूषित जल हो गंगे
हे मातृ गंगे नमामि गंगे
नमामि गंगे! नमामि गंगे!
औषधीय जल मिले सभी को
सदा रहे अमृत-जल गंगे
हे मातृ गंगे नमामि गंगे
नमामि गंगे! नमामि गंगे!
आशीष ले मानव जग का
खिले सदा नित नई उमंगें
हे मातृ गंगे नमामि गंगे
नमामि गंगे! नमामि गंगे!
2 टिप्पणियाँ
-
सुंदर पहलू के साथ पवित्र वर्णन
-
बहुत सुन्दर।
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- अखण्ड भारत
- अमृत-जल
- अयोध्या धाम
- एक भारत श्रेष्ठ भारत
- गणतंत्र दिवस
- गति से प्रगति
- जल-महिमा
- तीर्थराज प्रयाग
- दीपोत्सव
- नमामि गंगे
- नव वर्ष
- नव-संवत्सर
- पावन पुण्य सलिला सरयू
- मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम
- माँ अन्नपूर्णा: अन्न वरदान
- मातृशक्ति
- मेरी माटी मेरा देश
- योग ॠषि
- रामलला की प्राणप्रतिष्ठा
- लोकतंत्र
- लोकतंत्र का महापर्व
- वन-महोत्सव
- शत-शत नमन!
- सजग बनो मतदाता
- सम-नागरिकता
- स्वातंत्र्योत्सव: हर घर तिरंगा
- हरेला पर्व
- हिंदी भारत माँ की बिंदी
- हिमालय संरक्षण दिवस
- किशोर साहित्य कविता
- विडियो
-
- ऑडियो
-