माँ अन्नपूर्णा: अन्न वरदान
वेद भूषण त्रिपाठीमाँ अन्नपूर्णा का वरदान,
क्षुधा-तृप्त हो हर इंसान।
माँ की महिमा जग में न्यारी,
स्वच्छ रसोई मंगलकारी।
अन्न का सदा करें सम्मान,
अन्न में बसते ईश महान।
जन-जन में फैले सद्ज्ञान,
नशा-मुक्त हो हर इंसान।
सदा सात्विक भोजन पाएँ,
धूम्र-पान मदिरा से दूरी बनाएँ।
स्नहे भाव से भोजन पाएँ,
जूठी थाली स्वच्छ बनाएँ।
थाली में हाथ कभी न धोएँ,
राहु-केतु की कृपा सजोएँ।
थाली में जूठा कभी न छोड़ें,
ईश-कृपा समृद्धि से जोड़ें।
अन्न से जीवन वायु से प्राण,
मानव-जीवन का परित्राण।
मानव-जीवन सुमंगल पावन,
शुद्ध सात्विक अन्न सुहावन।
माँ अन्नपूर्णा का वरदान,
क्षुधा-तृप्त हो हर इंसान।
माँ की महिमा जग में न्यारी,
स्वच्छ रसोई मंगलकारी।
2 टिप्पणियाँ
-
माँ अन्नपूर्णा का वरदान कविता में लेखक ने ज्ञान युक्त मुद्दों को ज़िंदा किया है ।
-
अति सुंदर, जनहितकारी कृति
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- अखण्ड भारत
- अमृत-जल
- अयोध्या धाम
- एक भारत श्रेष्ठ भारत
- गणतंत्र दिवस
- गति से प्रगति
- जल-महिमा
- तीर्थराज प्रयाग
- दीपोत्सव
- नमामि गंगे
- नव वर्ष
- नव-संवत्सर
- पावन पुण्य सलिला सरयू
- मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम
- माँ अन्नपूर्णा: अन्न वरदान
- मातृशक्ति
- मेरी माटी मेरा देश
- योग ॠषि
- रामलला की प्राणप्रतिष्ठा
- लोकतंत्र
- लोकतंत्र का महापर्व
- वन-महोत्सव
- शत-शत नमन!
- सजग बनो मतदाता
- सम-नागरिकता
- स्वातंत्र्योत्सव: हर घर तिरंगा
- हरेला पर्व
- हिंदी भारत माँ की बिंदी
- हिमालय संरक्षण दिवस
- किशोर साहित्य कविता
- विडियो
-
- ऑडियो
-