लोकतंत्र
वेद भूषण त्रिपाठी
आओ सब मिल स्वाभिमान से
लोकतंत्र का मान बढ़ाएँ।
मानवता को संकल्पित हो
जनजीवन समृद्ध बनाएँ।
जन-जन के आँखों में सपने
हों साकार सुयश सुंदर बन।
बच्चे हों कर्मनिष्ठ राष्ट्र के
राष्ट्रभाव से शिक्षा पाएँ।
विकसित नहीं विकासशील हो
समरसता का पथ अपनाएँ।
खिल जाए ख़ुशियों से चेहरा
सब मिलकर जनतंत्र सजाएँ।
आओ सब मिल स्वाभिमान से
लोकतंत्र का मान बढ़ाएँ।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- अखण्ड भारत
- अमृत-जल
- अयोध्या धाम
- एक भारत श्रेष्ठ भारत
- गणतंत्र दिवस
- गति से प्रगति
- जल-महिमा
- तीर्थराज प्रयाग
- दीपोत्सव
- नमामि गंगे
- नव वर्ष
- नव-संवत्सर
- पावन पुण्य सलिला सरयू
- मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम
- माँ अन्नपूर्णा: अन्न वरदान
- मातृशक्ति
- मेरी माटी मेरा देश
- योग ॠषि
- रामलला की प्राणप्रतिष्ठा
- लोकतंत्र
- लोकतंत्र का महापर्व
- वन-महोत्सव
- शत-शत नमन!
- सजग बनो मतदाता
- सम-नागरिकता
- स्वातंत्र्योत्सव: हर घर तिरंगा
- हरेला पर्व
- हिंदी भारत माँ की बिंदी
- हिमालय संरक्षण दिवस
- किशोर साहित्य कविता
- विडियो
-
- ऑडियो
-