भुरभुरी-सी चाँदनी में
दिखते हैं अँधेरी गलियों में
मुँह छिपाए बैठे
कुछ मकान।
रेनोवेट हो रही है बस्ती
बसी तुम्हारी बालकनी के नीचे।
क्षितिज पार तक फैली बस्ती से
एक छोटा सा टुकड़ा छिन भी जाए
तो बस्ती कुछ छोटी तो नहीं हो जाएगी
उसकी बाँहें बँध तो नहीं जाएँगी।
ये घर जो मुँह छिपाए बैठे हैं
ये टूटेंगे, तब ही तो काम मिलेगा
इनमें रहने वालों को,
जगमगा उठेंगे इनके घर।
सिर पर होगी अपनी छत।
या शायद
खंडहर में बदल रही है
तुम्हारी बालकनी के नीचे बसी
बस्ती कठपुतली वालों की।
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