काला चाँद
कुमार लव
रात, अकेले-
अकेले भटक रहे थे
सितारे।
पश्चिम से उगा
एक पथरीला चाँद
काला।
उस काले चाँद के
घने गुरुत्वाकर्षण में
खिंचे आए सब तारे,
लगाने लगे चक्कर
चक्कर पे चक्कर
उस काले चाँद का।
भुरभुरी सी चाँदनी में
दीखते हैं अजगर
बरगदों पर लिपटे हुए।
अंधियाली गलियों में
मुँह छिपाए बैठे हैं घर,
अँधेरा ओढ़े पेड़ों के
शिखरों पर बैठे हैं
काले कौवे
अपनी चोचों में दबाए
उँगलियाँ आलोचकों की।
पेड़ों के ऊपर
दौड़ती तरंगों पर
आज प्रतिबंध है,
कौवों की उड़ानों पर
आज प्रतिबंध है,
उल्लू की बोलियों पर
आज प्रतिबंध है।
भुरभुरी सी चाँदनी में
चौराहे पर टँगी है
एक लाश, नंगी।
जमे हुए ख़ून ने
ढक लिया है उसकी लाज को।
ख़ून,
बेमतलब ख़ून,
पथरीले चाँद के
घने गुरुत्वाकर्षण में
उबल पड़ा था ख़ून,
सिरों में भर गया था
आँखों में उतर आया था ख़ून।
उसके भी गालों की
कभी लालिमा था
गर्माहट भरा काला-लाल
ख़ून।
पथरीले चाँद के
घने गुरुत्वाकर्षण में
आँखों में उतर आया था
ख़ून।
सब दिख रहा था गुलाबी
सेब से गाल, सेब से नितंब,
गुलाबी घड़ा।
टूट पड़ी भीड़
काट खाया सेब,
हाथ में ले पत्थर
फोड़ दिया घड़ा।
पत्थर की चोट में
गूँज छुपी थी
डंके की चोट की,
हर उठते हाथ से
उड़ रही थीं बूँदें
ख़ून की,
उभर रहे थे धब्बे
चाँद पर
लाल लाल।
भुरभुरी सी चाँदनी में अब
टँगी है लाश नंगी
चौराहे पर खड़े
अंधे बरगद पर।
जमे हुए ख़ून ने
ढक ली है उसकी लाज।
जो भी उँगली उठी
ले उड़े काट कर
काले कौवे,
अंधी, अंधियाली, सूनी गलियों में
उग आए पोस्टर, दीवारों पर
मुँह छिपाए बैठे घरों की,
लाल-लाल ख़ूनी अक्षर
डरावने।
पर
प्रतिबंध है
पेड़ों के ऊपर
दौड़ती तरंगों पर,
कौवों की उड़ानों पर,
उल्लू की बोलियों पर।
अंधी गलियों में
फैली है दुर्गंध
सड़ती लाश की।
यह मौहल्ला रेनोवेट हो रहा है,
या बदल रहा है धीरे धीरे
खंडहर में,
कहना मुश्किल है।
शवभक्षी कीड़ों ने खींच दी है एक लकीर
मौहल्ले के आख़री घर से
चौराहे के बरगद तक,
एक ज़िन्दा लकीर
थिरकती समय के ताल पर।
रेंग रहे हैं ये कीड़े
उस लटकती लाश पर,
उसकी ग़ायब होती खाल पर,
उसकी पिघलती अंतड़ियों में।
फटी फटी आँखों से देख रहे हैं उल्लू
पर नहीं पा रहे बोल
बोल नहीं पा रहे।
पोस्टरों पर बने
लाल लाल ख़ूनी अक्षर
बंद हैं इसी मोहल्ले में।
एक तरंग हो गई है क़ैद
दो छोरों के बीच
आख़िरी घर और बरगद के बीच,
अनदेखी उँगलियाँ किसी की
छेड़ती हैं इस तरंग को,
उठता है संगीत,
एक गीत संगीन
पूछता है बार बार-
कब ढलेगा ये ढलता चाँद?
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