भीड़

कुमार लव (अंक: 234, अगस्त प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

भीड़ बड़ी थी। 
अपने खेत का काम छोड़
ऑफ़िस की चूहा दौड़ छोड़ 
जीवन की आपाधापी से 
एक दिन चुरा कर लोग 
आए थे सपने सजाने। 
 
मंच पर खड़ा था 
सफ़ेद पोशाक में 
अपने चमड़े के पंख छुपाए 
एक नेता। 
 
बहुत ऊर्जा थी उसमें 
ऊँचा स्वर था 
तरोताज़ा लग रहा था, 
लोग थके-थके थे 
अकेली आवाज़ें अब भी सहमी थीं, 
हाँ, झुंड में ज़रूर जान थी, उड़ान थी। 
 
आए थे सपने सजाने 
फिर हाथ में क्यों थी गुलेलें? 
कहाँ से चले आए थे बघनखे, ख़ंजर? 
किसने बाँटी थीं तलवारें? 
जन-गण के हाथ ऑटमैटिक गन? 

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