हर फ़िक्र को धुएँ में . . .
कुमार लववे दिन
कुछ और थे,
धुआँ उड़ाकर
दुनिया को भूल जाता था,
कोई कुछ कहता भी,
तो सपनों में खो जाता था।
आज
धुआँ उड़ा, गाड़ी पीछे ली
तो कोई सिर फट गया,
शायद मर गया वह,
मैंने देखा नहीं।
आज ही
एक नेता के सिर पर
इनाम देखा,
अब सोचता हूँ
उसका सिर उतार लूँ
शायाद मशहूर हो जाऊँ,
और फिर,
धुआँ उड़ाकर,
सब भूलना न पड़े।
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