क्या चाँद को चेचक हुआ था?

क्या चाँद को चेचक हुआ था?  (रचनाकार - कुमार लव)

8. 

 

नहा कर निकला था चाँद 
बादल लपेटे, 
विजया छन रही थी 
उस दुनिया से, इस दुनिया में। 
 
या शायद 
बड़ी-सी मकड़ी थी आसमान में 
उसका ज़हर उतर रहा था 
उस दुनिया से, इस दुनिया में। 
 
बालकनी के नीचे
सफ़ेद पानी सी हवा बह रही थी, 
काग़ज़ के कुछ टुकड़े थे
भँवरों में क़ैद। 
जाने किसके इंतज़ार में
गोल-गोल घूम रहे थे। 
दवाइयों के पर्चे थे, 
बियर के कैन
और सिगरेट के बट भी। 
 
या शायद 
वह काली मकड़ी जिसने 
कल्पवृक्ष पर हमला किया था, 
सहस्रों लंबे तंतुओं से
सोख डाली थी सारी संभावनाएँ, 
हो गई थी सुनहरी, 
रेंगते-रेंगते अब 
आ पहुँची है यहाँ, 
कल्पवृक्ष की इस काली डाल पर; 
पर यहाँ कौन देगा उसे पोषण? 
कहाँ है संभावनाएँ? 

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