क्या चाँद को चेचक हुआ था?

क्या चाँद को चेचक हुआ था?  (रचनाकार - कुमार लव)

9. 

 

रात भर मैं भरता रहा रंग आसमान में
अनगिनत काली-नीली तितलियों की लिखता रहा उड़ानें, 
सितारों के गुच्छों को, चाँद को भी लगाया रंग
 
सुबह तुम चाँद चुरा कर ले गईं
 
प्रभात की लालिमा चुपड़ी उस पर
मैंने देखा तुम्हारी बालकनी में
चमकता चाँद तुम्हारे बालों में लिपटा
 
बाल, या चाँदनी के तार
बिगड़ा मेरा कैनवस, भर गया मन में मलाल
अब कहाँ उड़ें मेरी तितलियाँ? 
कहाँ है कैनवस जिस पर बिखेरें वे रंग? 
 
तुम बिखेरो मुस्कान 
गालों की लाली में डूब जाने दो मेरे रंग
शायद कभी वे भी 
कैटरपिलर-से बदल जाएँगे 
और उड़ जाएँगे लेकर तुम्हारा चाँद। 

<< पीछे : 8.  आगे : 10.  >>