क्या चाँद को चेचक हुआ था?

क्या चाँद को चेचक हुआ था?  (रचनाकार - कुमार लव)

10. 

 

आख़िर सीख ही लिया मैंने 
प्रेम करना, तुमसे। 
 
ताज़े ज़ख्म सा लाल प्रेम, बेदर्द और बेलौस। 
 
हर आवाज़ पर ध्यान टिकाए, बालकनी की रेलिंग पर बैठा 
लाचार कबूतर-सा प्रेम। 
 
मेरे होंठों पर सजी लंबी ख़ामोशी-सा प्रेम
तुम्हारी बाँहों में सिमटी सिकुड़ी चादर-सा प्रेम, 
चाँद की ओढ़ी वह चुप्पी जिसमें 
छिपा लिए हैं उसने अपने दाग़। 
 
हमारी गर्माहट में बसा
पसीने की गंध-सा प्रेम। 
 
शोर में 
शब्दों की परछाईं में छिपा 
दुबका-दुबका-सा प्रेम। 

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