शवभक्षी कीड़ों का जनरल रच रहा नरमेध
कुमार लव
शवभक्षी कीड़ों का जनरल रच रहा नरमेध
प्रज्वलित है हर दिशा, आतंकित यह देश
यह फ़ौज भूखी है, सब ही को खाएगी निर्लज्ज
रीढ़वाला हो कोई, या रेंगता अवशेष
सब हार बैठे हो लगा तुम दाँव दीमक पर
ले आओ भारत माँ को अब खींच उनके केश
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- अभिषेक
- अरुणाचल से आए मिथुन
- आशा
- उल्लंघन
- ऊब
- एक ख़्वाब सा देखा है, ताबीर नहीं बनती
- एकल
- कानपुर की एक सड़क पर
- काला चाँद
- गंगाघाट पर पहलवानों को देख कर-1
- तो जगा देना
- नियति
- बातचीत
- बुभुक्षा
- भीड़
- मुस्कुराएँ, आप कैमरे में हैं
- यूक्रेन
- लोकतंत्र के नए महल की बंद हैं सब खिड़कियाँ
- लोरी
- शव भक्षी
- शवभक्षी कीड़ों का जनरल रच रहा नरमेध
- शाम
- शोषण
- सह-आश्रित
- हर फ़िक्र को धुएँ में . . .
- हूँ / फ़्रीडम हॉल
- हूँ-1
- हूँ-2
- कविता-मुक्तक
- विडियो
-
- ऑडियो
-