क्या चाँद को चेचक हुआ था?

क्या चाँद को चेचक हुआ था?  (रचनाकार - कुमार लव)

4. 

 

गुलाबों का गुच्छा लिए 
खड़ा हूँ मैं 
तुम्हारी बालकनी के नीचे। 
 
तुम खड़ी हो 
इंतज़ार में 
आकाश वाले बूढ़े बाबा के, 
चमत्कार के। 
 
गुच्छा, काँटों से छिदे हाथों का 
मुट्ठी भर कीचड़ और प्यार का; 
प्यार, कीचड़ में छुपे कुछ कीड़ों का। 
 
अपने हिस्से का आसमान बेच कर 
ख़रीदा है बाग़ 
और रोज़ छिदने वाले हाथ, 
और कीड़ों का प्यार। 
 
मेरे बेचे आसमान में है 
तुम्हारी बालकनी, 
और बालकनी से ढका 
तुम्हारा चाँद। 
 
पर फिर भी 
फीका है इस गुच्छे का रंग 
तुम्हारे गाल पर मली
लाली से। 
 
क्या बेचा था उसके लिए? 

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