शरद मुस्काए
अविनाश ब्यौहारशेफाली हँसे
शरद मुस्काए।
जाड़े के दिन भाए।
आज भोर ने
ओस से
मुँह धोया है।
खेतों में
गेहूँ का
बीज बोया है॥
सात घोड़ों का रथ लिए
दिनमान आए।
ठंड से
हैं मानो
हवाएँ काँपती।
और जल रहे
अलाव की
मन भाँपती॥
स्वेटर, शाल औ जर्किन
पुलक-पुलक जाए।
चुभता लगा
सन्नाटा-
सड़कें सूनी।
कौड़े भी
गो कि
रमा रहे धूनी॥
आम्रकुंज में कोयल
कुहू -कुहू गाए।
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