वक़्त की गहराइयों से ढूँढ लाई हूँ समाँ
जीते जी मरने की कोशिश ने किया है बेज़ुबाँ।।
सूनी है ये राह लम्बी ना डगर आसान ये
ख़ुद से मिलने की यही पतली गली में है जहाँ।।
कुछ इशारे कर रही है, रात दिन कुदरत यहाँ
होश में बेहोश है क्यों है तुझे जाना कहाँ?
उम्र बढ़ती जा रही है, ज्यों घटे है ज़िंदगी
कितने मौसम आते जाते, कर रहे इसको बयाँ।।
मौत कि मौसम न देवी, जो पलट आती रहे
इक हवा का तेज़ झोंका, आए ऐसे ज्यों ख़िजाँ।।