विलोम हुए

15-06-2021

विलोम हुए

अविनाश ब्यौहार (अंक: 183, जून द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

जिन्हें पर्याय होना था
वे लोग विलोम हुए।
 
छाया कैक्टस की
जीवन में पड़ती है।
विलोचन में मनोहारी
छवि गड़ती है॥
 
हरी-भरी वसुंधरा लगती
पर वे व्योम हुए।
 
लहराते हैं जंगल
अब सन्नाटों के।
पैर में काँटा चुभा
होगा काँटों के॥
 
हैं लोहे के सींखचे आज
गलकर मोम हुए।
 
कँटीली झाड़ी से
अमंगल क्षण हुए।
गंध बिखेरते फूलों से
कण-कण हुए॥
 
मेरे नेक इरादे मानो
जलकर होम हुए।

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