सरगोशियाँ हर ओर हैं

01-01-2021

सरगोशियाँ हर ओर हैं

अविनाश ब्यौहार (अंक: 172, जनवरी प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

हिन्दी ग़ज़ल

मधुमालती छंद
 
2212  2212
 
सरगोशियाँ हर ओर हैं।
चारों तरफ क्यों शोर है॥
 
उनकी यहाँ पर ये दशा, 
बस प्रेम की इक डोर है।
 
भीगा हुआ है हर्ष से,
उनका नयन का कोर है।
 
अब इस मशीनी दौर में,
क्या बाजुओं का ज़ोर है।
 
सूरज उगेगा पूर्व से,
कितनी सुहानी भोर है।

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