ताकि ख़त्म हो सके . . .
डॉ. ममता पंत
प्रतिभाशाली एवं गुमनाम स्त्रियाँ
भूत के गर्त में दबी सी
जिनमें जम गई है
गर्द की मोटी परत सी . . .
उनके अनगिनत
अनसुलझे सवाल
जिन्हें अनसुना कर दिया गया
वे सवाल अनायास ही नहीं उपजे
सदियों से कर रहे
अन्तर्मन में गुत्थम-गुत्था
अब आ पड़े हैं
मुखर रूप धर
पितृसत्ता की झोली में
जिसका तिरपाल बिछा है
पूरे विश्व में . . .
वे सवाल
सवाल नहीं वर्चस्ववादी सत्ता के लिए
बस विषय मात्र हैं
चटखारे का
ताकि ख़त्म हो सके
स्त्री की बुद्धिमत्ता
कुचला जा सके
उसकी गंभीरता को
और उसकी जिज्ञासा को भी!
ताकि ख़त्म हो सके . . .
प्रतिभाशाली एवं गुमनाम स्त्रियाँ
भूत के गर्त में दबी सी
जिनमें जम गई है
गर्द की मोटी परत सी . . .
उनके अनगिनत
अनसुलझे सवाल
जिन्हें अनसुना कर दिया गया
वे सवाल अनायास ही नहीं उपजे
सदियों से कर रहे
अन्तर्मन में गुत्थम-गुत्था
अब आ पड़े हैं
मुखर रूप धर
पितृसत्ता की झोली में
जिसका तिरपाल बिछा है
पूरे विश्व में . . .
वे सवाल
सवाल नहीं वर्चस्ववादी सत्ता के लिए
बस विषय मात्र हैं
चटखारे का
ताकि ख़त्म हो सके
स्त्री की बुद्धिमत्ता
कुचला जा सके
उसकी गंभीरता को
और उसकी जिज्ञासा को भी!
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