अनहद नाद
डॉ. ममता पंतकितना प्यारा शब्द है ना प्यार!
जो एक पल की हँसी देकर
छोड़ देता है तड़पने को पूरी ज़िन्दगी . . .
पाना चाहते हैं जिसे सब
मैंने उसे महसूस किया बस
कोशिशें जारी हैं उसे भी मिटाने की अब
क्योंकि उनके अनुसार
मुझे जीना है . . .
हाँ जीना है!
तिलांजलि दे उसे
उसकी यादों को
जो सहारा हैं जीने की
जिन्हें देखकर महसूस कर
जी पाई हूँ अब तक
प्रवाहित कर उन्हें
मुक्त करना है उसे ख़ुद से
क्योंकि जीना है मुझे . . .
हाँ प्रवाहित!
निर्जीव चीज़ों को
जिन्होंने बनाए रखा सजीव मुझे
जो जीने का हैं सम्बल
जिन्हें देख
तड़पती, बिलखती और सँभलती मैं . . .
बढ़ पाई पथरीली राहों पर
अब उन्हें ही प्रवाहित कर
बढ़ना है जीवन-पथ पर आगे और आगे!
जहाँ से लौट पाना नामुमकिन हो . . .
हाँ लौट पाना!
पर ये नहीं बता पाया कोई
कि जो सजीव है अंतस में
निरंतर प्रवाहमय साँसों में
बजता है जो नित
अनहद नाद बन
उसे कैसे प्रवाहित करे कोई!
क्या आत्मयज्ञ की पुनीत ज्वाला
प्रवाहित हो सकती है स्रोतस्विनी में?