सहारा

डॉ. ममता पंत (अंक: 221, जनवरी द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

जब-जब आए आँखों में आँसू
मन में उदासी ग्लानि विचार
जब घेर लिया चहुँ दिशा से ग़मों ने
औ' छा गया जीवन में अंधकार! 
तब-तब ए कविता मैंने तेरा सहारा लिया। 
 
भर दिया मैंने तेरे अन्तःस्थल पर
अपने जीवन की व्यथाओं को
समेटती गयी तू भी ख़ुद में
मेरी दु:खमयी कविताओं को
टूटकर जब भी बिखरने लगी इस जहाँ पर! 
तब-तब ए कविता मैंने तेरा सहारा लिया। 
 
जग के दुखों से आहत होकर
जब निकलने लगी मेरी सिसकियाँ
पहुँच गयी जीवन के उस छोर पर
कोई न था यम व मेरे दरमियान
जीवन के गूढ़ रहस्य को समझने में
जब भी रही असफल! 
तब-तब ए कविता मैंने तेरा सहारा लिया। 
 
अपनी आशाओं औ' निराशाओं से
भरती गई तेरे ख़ाली पन्ने
बैठ जीवन सागर तट पर
मलने लगी हाथ अपने
हाथों से रेत बनकर फिसलने लगी जब ज़िन्दगी! 
तब-तब ए कविता मैंने तेरा सहारा लिया। 

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