अंतस् का रावण! 

15-10-2022

अंतस् का रावण! 

डॉ. ममता पंत (अंक: 215, अक्टूबर द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

“असत्य पर सत्य की विजय। 
अधर्म पर धर्म की विजय। 
अंधकार पर प्रकाश की विजय। 
बुराई पर अच्छाई की विजय . . .”
 
आज रावण जलेगा फिर
दशहरा मनेगा धूम से
फिर दौर चलेगा आतिशबाज़ियों का
ढोल-नगाड़ों का
कि रावण जलेगा फिर
पर कब जलेगा
रावण अंतस् का
जलेंगे कब
मन के विकार
स्वतंत्र हो घूमेंगी कब
सियाएं गलियों में बेफ़िक्र 
पूछती है सिया बारंबार! 
 
पुतला दशानन का
जलना ही था
सो जल गया
आसान था जलना
पुतला ही तो था! 
क्या होगा इतना आसान कभी
जलना कुंठाओं का
षड्यंत्रकारियों का
पापियों का! 
पूछती है सिया बारंबार! 
 
फिर हुई है शिकार
एक नाबालिग 
क्रूर नज़रों की
जगी है फिर
दमित इच्छा 
आततायी की
जिसका दोष मढ़ दिया
बच्ची पर ही
तंज़ कसे जा रहे
कपड़ों पर
कब तलक
होगी मजबूर 
देने को अग्नि परीक्षाएँ! 
माथा पीट रही सिया बारंबार
 
पूछ रही रोती-बिलखती
क्या देखा बच्ची में
जो चमक गई कुदृष्टि तेरी
क्यों न देख पाई नज़र
झलक अपनी बेटी की उसमें 
हे अनाचारी! 
अत्याचारी! 
दुराचारी! 
व्यभिचारी आक्रांता! 
 
सहसा होता है अट्टाहास! 
सिया भयभीत-सी
देखती है अपलक
चहुँ दिशाओं में
रावण ही रावण
अनगिनत! 
हाहाहाहाहा . . .
 
मुझे जलाना आसान नहीं
मेरे असंख्य रक्तबीज
जो छितर गये हैं 
सृष्टि पर
कौन जलायेगा उन्हें? 
हाहाहाहाहा . . .
 
मैं तो विराजमान
मन-मस्तिष्क पर
करते रहो
जलाने का अभिनय नित
मैं छोड़ गया हूँ
असंख्य दशानन
सृष्टि के गर्भ में! 
 
होती ही रहेंगी
अनगिनत सियाएँ
अपमानित, अपहृत . . . 
राम तिहारे
कर पाएँगे कुछ? 
रक्षा तुम्हारे स्वाभिमान की! 
क्या कर पाए थे? 
कसौटी में खरी उतरने को
जनमानस की! 
भिजवा दिया वन को 
अर्द्धरात्रि में
गर्भवती थी ना तुम! 
हाहाहाहाहा . . .! 
 
सिया विवश है सोचने को बारंबार! 

1 टिप्पणियाँ

  • 10 Oct, 2023 10:31 AM

    बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति हैं मैम, आप हमारी प्रेणना की स्रोत हैं।

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