सीरत उसकी
डॉ. ममता पंत
उसकी सूरत ही नहीं
सीरत भी होती है सुंदर
जिसे देखने को ज़रूरी है
सुंदर मन का होना
मान-मर्यादा के ख़ातिर
बँध जाती
अनजाने बँधन में
निभाती ताउम्र
देर से आने पर
पूछती है सवाल
सवाल!
जो शक नहीं
होती है चिंता
ज़बाब नहीं मिलता
मिलती है तो सिर्फ़ लताड़
निभाती है फिर भी
आँसुओं को छुपाकर
निभाना ही होता है
वह जानती है
रिश्ते निभाना
हालातों से कर समझौता
बनती है हमसफ़र
धोखा पाने पर
सिसकती है अकेले
नहीं फेंकती तेज़ाब उस पर
धागा बाँध मन्नत का
ख़ुशी ही माँगती
उसकी हर पहर
बाँधती नहीं बँधनों से
रखती है आज़ाद
जानती है वह
कि बँधा हुआ रिश्ता
चला जाएगा
इक दिन छोड़कर
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