सपूत आज भी हैं . . . 

01-05-2024

सपूत आज भी हैं . . . 

भगवती सक्सेना गौड़ (अंक: 252, मई प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

रवीना अस्पताल के बिस्तर पर लेटी थी। दो दिन पहले इतना तेज़ दर्द पेट में उठा कि उसे समझ में ही नहीं आया कि उसे क्या हो रहा है। एक महीने से हल्का दर्द होता था, पर वह गैस की परेशानी सोचकर अजवाइन फाँक लेती। इस बार के दर्द के बाद वर्मा साहब और अमर उसे जल्दी से कार में बिठाकर एस्टर हॉस्पिटल ले आये। 

उस दिन जल्दी में जो टेस्ट हो सकते थे, हुए, डॉक्टर ने दवाइयों का पुलिंदा पकड़ा दिया और कई सारे टेस्ट के नाम लिख दिए कि कल फिर आइयेगा। 

रवीना सबके साथ घर आ गयी। दूसरे दिन ही ईमेल से सब रिपोर्ट आ गयी, सबकुछ तो समझ नहीं आ रहा था, पर कुछ मालूम पड़ रहा था, लिवर ख़राब हो रहा, डॉक्टर ने मिलने के लिए बुलाया है। 

रवीना को दुनिया में सबसे ख़राब जगह अस्पताल लगती थी, जहाँ फिर जाना पड़ा। डॉक्टर ने अपने केबिन में बुलाकर वर्मा साहब को रिपोर्ट के बारे में सब जानकारियाँ दी। डॉक्टर का कहना था, लिवर बिल्कुल ख़राब हो चुका है, लास्ट स्टेज में है, एक महीने के अंदर लिवर ट्रांसप्लांट की ज़रूरत है। वर्मा जी को चक्कर आने लगे, वह भी हाई बीपी के मरीज़ थे, डॉक्टर ने पूछा, “बेटे का फोन नंबर बताइये।” और फिर अमर बेटे और अक्षरा बहू को भी बुलाया गया। सारी स्थिति की जानकारी देते हुए डॉक्टर ने कहा, “जल्दी तय करिएगा, क्या करना है, समय कम है।” 

रवीना अस्पताल में भर्ती हो गयी थी। वर्मा जी और बेटे बहू घर आ गए थे। माहौल चिंताजनक था, वर्मा जी बार-बार बिलख पड़ते थे, अमर का हाथ पकड़ कर बोलते, अब क्या होगा बेटा, रवीना को कुछ हो गया, तो मैं कैसे जीऊँगा। पैंतीस वर्षों से वह मेंरी साँसों में धड़कती है। लिवर ट्रांसप्लांट करने में तो लाखों का ख़र्च आएगा। मैं पेंशनर हूँ और सब रक़म इस महल को बनाने में लगा चुका हूँ। 

“पापा, अजीब बातें करते हो, आप आराम से रहिये, मुझ पर और अक्षरा पर भरोसा रखिये, मम्मी को हम कुछ नहीं होने देंगे। कल सुबह डॉक्टर से मुझे कई बातें पूछनी हैं।”

वर्मा जी बहुत ज़्यादा पूजा पाठ नहीं करते थे, कभी मंदिर नहीं जाते थे। हमेशा मज़ाक़ करते थे, “ये डिपार्टमेंट रवीना का है, वही जाने!” और उस रात वह घर के मंदिर में जाकर रात में ही दीया जलाकर देवी जी के सामने हाथ जोड़कर घर की देवी की सलामती की प्रार्थना में लगे थे। बारह बजे अक्षरा आकर बोली, “पापा इतना परेशान मत होइए, आपकी भी तबियत बिगड़ जाएगी, आप सो जाइये, ईश्वर कुछ रास्ता ज़रूर दिखाएँगे।” 

सुबह फिर नाश्ते के बाद सब हॉस्पिटल गए, डॉक्टर से अमर ने पूर्ण विवरण लिया, कितना ख़र्च आएगा। डॉक्टर के अनुसार सब मिलाकर चालीस लाख लग सकते हैं। फिर अमर ने वर्मा जी को रवीना के पास बैठाकर बातें करने के लिए कहा। डॉक्टर से पूछा, “ये बताइये मैं अभी पैंतीस वर्ष का हूँ, मैंने पत्नी को बता दिया है, पर पापा को नहीं बताना चाहता। क्या मैं अपनी मम्मी को लिवर दे सकता हूँ?” और डॉक्टर के अनुसार यह सबसे बढ़िया ऑप्शन (विकल्प) था। इसके बाद ही सारी प्रक्रिया चलने लगी। अमर ने एक प्लाट ख़रीद रखा था, उसको बेचकर पैसों के इंतज़ाम किया। फिर दस दिन तक कई टेस्ट हुए, दवाइयाँ चलीं, बीच में दो दिन रवीना को कोई इन्फ़ेक्शन हो गया, इस कारण ऑपरेशन रुक गया। सब क्रियाएँ चल रही थीं, पर लिवर कौन दे रहा, ये वर्मा जी को नहीं बताया गया। घर और अस्पताल के चक्कर लगते रहे। 

अंत में जिस दिन ऑपरेशन हुआ, वर्मा जी को डॉक्टर ने हिदायत दी, आप घर में रहें, आपको हर मिनट की सूचना दी जाएगी। 

रवीना का लिवर ट्रांसप्लांट का ऑपरेशन सफल रहा, सब की जान में जान आयी। अमर को भी अस्पताल में दो दिन रहना पड़ा। तब जाकर वर्मा जी को ख़बर लगी और वह बहुत नाराज़ हुए, मुझे क्यों नहीं बताया। इतना बड़ा डिसिज़न अकेले ले लिया, बहू अक्षरा ने भी सब शालीनता से मान लिया। 

आज रवीना अस्पताल से घर आ गयी, बहू बेटे ने फूलों से स्वागत किया, घर को भी फूलों से सजाया गया था। और वर्मा जी रवीना और पड़ोसियों को बता रहे थे, “तुमने देखा आज भी श्रवण कुमार होते हैं, और वैसी ही उनकी पत्नी भी सबको मानने वाली होती है।”

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कहानी
कविता
लघुकथा
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में