नयी बहू

15-12-2023

नयी बहू

भगवती सक्सेना गौड़ (अंक: 243, दिसंबर द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

सरकारी नौकरी वाले लड़के अक्षय की इंजीनियर बहू से शादी की बात चल रही थी। 

घर में, सासु पूजा देवी, ठहरी गाँव की दसवीं किसी तरह पास की हुई। जब से शादी तय हुई, मन ही मन बहुत परेशान थी। कहीं तेज़-तर्रार जैसी फ़िल्मों में या सीरियल में बहुएँ दिखाते हैं, वैसी आ गयी, तो मैं क्या करूँगी? अभी तक तो रसोई में काम करते ही दिन गुज़रता है, घर में बेटा अक्षय और उसके बाबूजी ही अनादर करते थे, कहीं बहू भी ऐसी निकली तो और परेशानी होगी। 

कुछ बात चल रही हो और अगर पूछ लें तो जवाब मिलता था, “तुम्हारे मतलब की बात नहीं है, जाओ देखो किचन में बहुत काम पड़ा है।”

कुछ ही दिनों बाद सब रिश्तेदार आये, नाचते, गाते, धूम के साथ शादी की रस्में समाप्त हुईं। आरती दुलहन के रूप में घर में पधारी। पूरा परिवार निहाल हो गया, कितनी प्यारी है, गोल-सा चेहरा चाँद का टुकड़ा ही है। पूजा थोड़ी दूरी बनाकर ही रहती थी, कहीं कोई ग़लती न निकाल दे, पर धीरे धीरे लगा स्वभाव तो बहुत प्यारा है। एक महीने बाद ही उसने घर को सुरुचिपूर्ण ढंग से सजा दिया, प्रत्येक की दुलारी बन चुकी थी। उसका स्वभाव इतना मृदुल था कि कुछ देर को भी कहीं जाए तो घर सूना लगता था। सबको समझा कर कुक भी लगवाया, पूजा का काम कुछ कम हुआ, कई बार उसने छुट्टी के दिन बाहर से खाना, नाश्ता भी जोमाटो के द्वारा मँगाया। 

एक दिन पड़ोसन भाभी आयी थी और बोली, “पूजा सम्हलकर रहना, आजकल की लड़कियों का कोई भरोसा नहीं, पूरा साम्राज्य ख़ुद ही चलाना चाहती हैं। दुनिया भर की बहुओं की कथा बाँचने लगी।”

पूजा ने जवाब दिया, “अरे, नहीं, मेरी आरती बहुत शालीन है, उसके आने से ही प्रेम की गंगा बह रही, अब तो हम सब मिलकर गप्पें भी करते हैं, कई बार जो कभी नहीं हुआ वह भी हो जाता है, सबके साथ वह अंताक्षरी का खेल शुरू करती है।”

पर उसके जाते ही, मन में ग़लतफ़हमी पैदा होने लगी। बहू की हर छोटी बड़ी बात पर गहन विचार करने लगी। 

बहू ने एक दिन कहा, “आइये मैं आपको साड़ी पहनने का दूसरा ढंग बताऊँ, मेरी सहेलियों के सामने आप सीधे पल्ले की न पहना करो।”

उस समय पूजा चुप रही, पर दिनभर ये बात उसे खलती रही, जबकि आरती ने प्यार से ही कहा था। 

एक दिन बातों-बातों में आरती ने पूछ लिया, मम्मी आपका जन्मदिन कब आता है? 
उसने कहा, “कभी मनाया नहीं, पर मेरे बाबूजी कहते थे, गाँधीजी और मेरा जन्मदिन एक ही दिन पड़ता है।” 

पहली अक्टूबर की रात से ही आरती ने बढ़िया व्यंजन बनवाये, अक्षय से केक मँगवाया, रात को बारह बजे पूजा जी के बेड रूम नॉक किया। जब मम्मी, पापा बाहर आये तो सबने हैप्पी बर्थडे बोलते हुए गाना शुरू कर दिया। सब लोगों ने मिलकर केक काटा और आरती ने एक लाल डिब्बा पकड़ाया, “मम्मी अभी खोलिए!” प्यारी-सी गोल्ड रिंग देखकर पूजा अवाक्‌ रह गयी और आरती को गले लगाया।

“मेरे जीवन में तुम पूजा की आरती ही बन कर आई हो, आजतक किसी ने मुझे हैप्पी बर्थडे नहीं बोला, घर में किसी ने पूछने की ज़रूरत नहीं समझी कि मेरा जन्मदिन कब होता है?”

अक्षय ने कहा, “मम्मी, असली जन्मदिन तो हम सब कल मनाएँगे। कल रात पूरा परिवार मिलकर होटल जाकर डिनर करेंगे, और हर व्यंजन आपके पसंद का होगा।”

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कहानी
कविता
लघुकथा
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में