पहला प्यार

15-02-2022

पहला प्यार

भगवती सक्सेना गौड़ (अंक: 199, फरवरी द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

दिल्ली की ज़बरदस्त ठंड में भावना दोपहर को भी रजाई में घुसी थी, उम्र भी दस्तक देकर समझा रही थी, चौकस रहो, कई बीमारियों के सर्टिफ़िकेट धारण कर चुकी हो। तभी टेबल पर रखा मोबाइल घनघना उठा, अब मजबूरी थी, हाथ बाहर निकाला जाए। 

“हेलो, कौन बोल रहा है?” 

“पहचानो!”

“अरे वाह, प्रेम तुम, आवाज़ में जितनी भी कँपकँपी आये, पर जानते हो, मैं तुम्हें पहचान ही लूँगी।” 

“हाँ, मैं तुम्हारा प्रेम, अपने घर गया था, फिर तुम्हारो यादों ने क़दम तुम्हारे घर तक पहुँचा दिया, भाभी से फ़ोन नंबर लिया, अब इस उम्र से शर्म लिहाज़ का दामन छोड़ बैठा। पता है, जब जब वैलेंटाइन वीक आया, मैं तुम्हारे अहसास में जीता रहा, इस बार अपने दिल के वो अछूते कोने से वादा किया था कि एक और अनछुए अहसास से इस बार मिला दूँगा।” 

“कैसी हो भावना, जानता हूँ, शारीरिक रूप से तुम किसी की हो लो, पर वो एक सूक्ष्म सा अहसास जो मैंने तुम्हारे दिल में बरसों पहले रक्खा था, वो फूलों की सुगंध, नदी का बहाव, जंगल के झरने की तरह जीवंत रहेगा।” 

“ओ, प्रेम, एक लंबे अंतराल के बाद इतनी मीठी-मीठी शहद सी बातें एक सपना ही लग रही हैं, पता नहीं क्यों अब तो दिल सोचने लगा, तुम सामने आकर यूँ ही बोलते रहो और मेरी साँस रुक जाए।” 

“हठ, आज भी वही की वही, अब तो बड़ी हो जाओ।” 

"पता है आज मेट्रो में तुम्हारे घर जा रहा था, बग़ल में एक लड़का वॉट्सएप पर मेसेज करते हुए थोड़ा घबराया हुआ था, लड़की ने उसके वॉट्स-एप स्टेटस को देखकर थम्स-अप का इशारा किया था और डीपी की भी तारीफ़ की थी, लेकिन . . . इसके आगे।” 

शायद दफ़्तर के लिए तैयार होते वक़्त एक निगाह घड़ी की तरफ़ थी, दूसरी फ़ोन पर। लेकिन नेटवर्क ग़ायब। देश को फ़ोर-जी, फ़ाइव-जी में ने जाओ तो कोई जी काम नहीं करता, और न कहीं जी लगता है। 
उसका जी उचट गया। 

“मेट्रो में बैठते हुए बस गुड-मॉर्निंग लिखा था उसने। नज़रें बदस्तूर मोबाइल पर जमी रहीं। प्रतीक्षारत। पहले मेसेज डलिवर हुआ, पहले एक टिक का निशान, फिर दो नीली धारियाँ . . . 

“उसका प्यारा सा मदहोश सा चेहरा बता रहा था, प्रेम में डूबा है, मुझे ऐसे लोग बहुत प्यारे लगते हैं।” 

“सुनो फ़ोन काटती हूँ, डोर बेल बज रही।” 

और वो दिन भावना हर गाना गुनगुनाते रही, “रंगीला रे, मेंरे मन में यू जगी है ये उमंग”।

श्रीमान जी भी पूछते रहे, “वाह, आजकल मूड बड़ा आशिक़ाना हो रहा है।” 

रात को नींद भी भावना से ज़बरदस्ती अतीत की रोमांटिक कहानी सुनाने पर ज़ोर दे रही थी। और भावना पहुँच गयी पड़ोसन भाभी के घर, वहाँ उनके भाई प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी के लिए आये थे। भावना भी उस समय बैंक पीओ की परीक्षा देने वाली थी। जब दिमाग़ी स्तर जब एक ही हो तो मज़ा ही आता है। दोनों कठिन से कठिन प्रश्न ढूंढ़कर एक दूसरे को हराना चाहते थे, और दोनों ही जीत जाते थे। 

इसी बीच कब दोनों अपना दिल हार बैठे, उन्हें समझ ही नहींआया। 

दिल्ली में घूमने में मज़ा आने लगा। कीर्ति नगर की एक कॉफ़ी शॉप में अक़्सर दोनों शाम को बैठने लगे। सिर्फ़ दो कप कॉफ़ी, दो हाथ, दो आँखें बातें करने में मशग़ूल रहते, कभी-कभी होंठ भी बोलने लगते। फरवरी का महीना आ चुका था, प्रेम वैलेंटाइन डे पूरे ज़ोर-शोर से मनाने की तैयारी में था। अब भावना किसी भी हालत में मना नहीं कर सकी, दोनों एक दूसरे के दिल में अधिपत्य जमा चुके थे। 

पहले दिन प्रेम ने उसे रीगल पर कॉफ़ी हाउस में वैलेंटाइन डे के रोज़ डे पर लाल गुलाब देकर स्वागत किया और चॉकलेट केक खिलाया। 

दूसरे दिन दोनों ने बुद्धा गार्डन में प्रोपोज़ डे मनाया। 

तीसरे दिन घर पर ही चुपके से चॉकलेट देकर चॉकलेट डे मनाया गया। 

चौथे दिन पड़ोस की भाभी ने ही एक टेडी बियर घर आकर दिया, जिसमें कोने में लिखा था . . . . . . फ़्रॉम प्रेम। 

भावना भावनाओं में बहती रही। 

पाँचवें दिन प्रेम ने प्रॉमिस डे पर उससे प्रॉमिस लिया, शादी मुझसे ही करोगी। 

छठवें दिन फिर दोनों कीर्ति नगर कॉफ़ी हाउस में चुपके-चुपके के दूसरे की बाँहों में थे। 

नियम के अनुसार ही चल रहे थे तो सातवें दिन एक पिक्चर हाल में किस डे भी मना लिया। 

अब आया प्रेम और भावना का वैलेंटाइन डे समारोह, दोनों ने बढ़िया रेस्टॉरेंट में कैंडल लाइट डिनर किया, और दोनों ने वादा किया, हर वैलेंटाइन वीक ऐसे ही मनाया जाएगा। 

दो दिन दोनों आराम करते रहे, मोबाइल तब तक नहींआया था। तीसरे दिन भाभी से ख़बर लगी उनकी मम्मी बहुत बीमार है, भाई, बहन आज ही जा रहे हैं। 

फिर समय का पहिया अपनी रफ़्तार पर आ गया, प्रेम की मम्मी नहीं रही, वो वहीं रह गया, पापा की देखभाल करनी थी। और इधर भावना की भावनाओं को आहत करके उसको दुलहन के वेश में सबने ससुराल भेज दिया। माँ, पापा बहुत ख़ुश थे, रेलवे अफ़सर लड़का मिला है, राज करेगी। 

अतीत के पन्ने खुलते रहे और पता नहीं कैसे सवेरा हो गया। 

भावना कहीं दूर से एक गाने की आवाज़ सुन रही थी . . . तुझको पुकारे मेरा प्यार आजा, मैं तो मिटा हूँ तेरी चाह में। 

श्रीमान जी सुबह भावना को जगा रहे थे, “अरे जानेमन, आज चाय नहीं मिलेगी क्या?” 

अचानक भावना नींद से जगी, “ज़रूर मिलेगी, आज तो बढ़िया चाय और नाश्ता भी मिलेगा।” 

और वो सोचने लगी, ’आज भी वैलेंटाइन डे है, मैं कितनी ख़ुशनसीब हूँ, अंदर बाहर हर तरफ़ मेरे प्यारे प्यारे लोग हैं’ चल दी, गोभी के पकौड़े और चाय बनाने। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
कहानी
लघुकथा
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में