सफ़ेद झूठ
भगवती सक्सेना गौड़आज किसी काम से चेन्नई जाने का प्रोग्राम बना, रामेश्वरी बहुत ख़ुश थी, चलो ज्योत्सना भाभी से मिलने का सुअवसर मिलेगा। दो चार दिन उनके पास रहूँगी।
रामेश्वरी अपने श्रीमान जी के साथ उनके घर पहुँच गयी थी। क़रीब दस वर्ष बाद मिलना हुआ था, दोनों एक दूसरे के गले मिलीं और बातों का दौर चला। रामेश्वरी जानती थी, बेटा आईटी इंजीनयर है, और अपनी माँ को बहुत चाहता है।
रामेश्वरी ने कहा, “बहू बहुत अच्छी मिली है, रविश का क्या हाल है।”
“ठीक है, बहुत जल्दी मेंं रविश की पसंद की ही लड़की से कोरोना काल में शादी हुई, मैं ज़्यादा किसी को बुला नहीं पायी।”
रात बारह बजे ही रामेश्वरी को यूँ लगा, कुछ बहस चल रही है, उठ गई।
“माँ, आपने बहुत ग़लत परवरिश दी है, आपका बेटा सफ़ेद झूठ बोलता है, कई बार मैंने पकड़ा है। मुझे बताया चांस ही नहीं मिल रहा। आज वह अपने दोस्त के फ़ोन से बात कर रहे थे; तब मैंने जाना, उन्हें अमेरिका की कंपनी में भेजा जा रहा था। उन्होंने मना कर दिया, ’मेरी माँ को मेरी ज़रूरत है।’ वो भी सिर्फ़ आपके कारण। जानती हूँ, आपकी तबियत ठीक नहीं रहती, कभी माइग्रेन कभी गठिया का दर्द सताता है। आप कहिए तो एक बढ़िया वृद्धाश्रम में बात करूँ, सब सुविधा मिलेगी।”
“बहू, सुबह रविश से बात करती हूँ, मैं यहाँ अकेली रह सकती हूँ, तुम लोगों को जहाँ जाना है जाओ।”
वो सुनकर अचंभित थी, ये ज्योत्स्ना, जिसके पति शादी के एक महीने बाद ही एक्सीडेंट मेंं समाप्त हुए और आठ महीने बाद ये बेटा रविश का जन्म हुआ। सब लोगों ने दूसरी शादी करने का प्रस्ताव दिया, पर उसने साफ़ इंकार किया। कई छोटे-मोटे काम, सिलाई, बिनाई करके उसने बेटे को इंजीनियर बनाया।
उसकी बहू के शब्द उसे तीर से चुभ गए, आज उसे वृद्धाश्रम जाने की बात सुननी पड़ी।
सुबह ही रविश की आवाज़ सुनाई पड़ी, “अक्षरा, तुम्हें जहाँ जाना है जाओ, मैं और माँ यहाँ से कहीं नहीं जाएँगे।”