कहानीकार

15-11-2022

कहानीकार

भगवती सक्सेना गौड़ (अंक: 217, नवम्बर द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

अक्षरा को जब भी रात को नींद नहीं आती, जीवन के अकेलेपन के क्षण उसे सताते, तो वो फ़ेसबुक के एक समूह में कहानी पढ़ने में तल्लीन हो जाती। फ़ौजी की पत्नी थी, जो अक़्सर बॉर्डर पर ही रहते। अब फ़ेसबुक में ही उसने दिल लगा लिया था, कम से कम उसकी बोरियत इसी से दूर होती थी। रोज़ कुछ कहानीकार उसे अपने से नज़र आने लगे थे, कइयों के नाम उसने कंठस्थ कर रखे थे और उन्हीं की कहानियाँ खोजकर पढ़ती रहती थी। एक अनमोल सिंह की कहानियाँ ज़रूर पढ़ती थी जो उसके दिल को छू जाती थीं। एक दिन इतनी मार्मिक सी कहानी पढ़ी कि उन्हें फ़ेसबुक पर ढूँढ़ निकाला और परिचय भी जान लिया। डीपी पत्नी के साथ थी, इसलिए मैसेंजर पर बात शुरू करी। 

“आप साधारण से बहाव में कहानी लिखते हैं, हर शब्द मुझे आगे पढ़ने को प्रेरित करता है, मैं कई कई बार आपकी लिखी कहानी पढ़ती हूँ।”

“महोदया, ये मेरा सौभाग्य है, वैसे मैं बहुत अदना सा लेखक हूँ, दिमाग़ में विचारों का मंथन चलता ही रहता है, उसमें से कुछ कहानी बन जाती है।”

अक्षरा ने जान लिया था, ये अनमोल जी लखनऊ में रहते हैं। एक बार अक्षरा अपने श्रीमान जी के साथ ही कोई शादी में शामिल होने लखनऊ चल पड़ी। मन में दबा कर एक इच्छा रखी थी अगर मौक़ा मिला तो इन लेखक महाशय के दर्शन ज़रूर करूँगी। 

तीसरे दिन ही अनमोल जी को लिखा, “कृपया अपना पता बताए, मैं और श्रीमान जी आपसे मिलना चाहते हैं।” वो दोनों पहुँच गए। बड़ा सा गेट था, तिमंज़िला मकान, घंटी बजाई। 

एक सभ्रांत महिला बाहर आयी और बोली, “आइए, स्वागत है।” 

अंदर जाकर हॉल पार करते हुए वो एक कमरे में ले गयी, अक्षरा सोच में पड़ गयी, ड्राइंग रूम में नहीं बैठाया। 

बड़ा सा बेडरूम था, जिसमें अनमोल चादर ओढ़े लेटे थे। बड़ा आश्चर्य हुआ, घर में किसी को बुलाया, और बिस्तर में ही पड़े हैं। 

तब ही उनकी पत्नी ने कहा, “मैम, यही हैं वो कहानीकार अनमोल जिससे आप मिलने आयी हैं, बैठिए।”

अक्षरा और श्रीमान जी ने नमस्ते किया और बैठ गए। 

अनमोल की पत्नी पानी के लिए अंदर गयी। 

तभी अक्षरा ने पूछा, “आपकी तबियत ठीक नहीं क्या हम ग़लत समय पर आ गए है, यूँ लग रहा है।”

“अरे, मैम, नहीं, नहीं, मैं तो नौ वर्षों से बिस्तर पर हूँ, और अपना वक़्त बिताने को ही कहानी लिखता हूँ।”

इतनी देर में अक्षरा की आँखों से अविरल अश्रु की धारा बहने लगी, हे भगवान, ये तेरी कैसी लीला है। 

अनमोल की पत्नी ने पानी दिया और बोली, “मैम, एक एक्सीडेंट में दिमाग़ में भी चोट आई थी, फिर शरीर के बाएँ हिस्से को लकवा मार गया, उसके बाद से मुम्बई, जयपुर सब जगह दिखाया, कोई सुधार नहीं हुआ। बस इसी को ज़िन्दगी कहते हैं, फिर भी हम सब हँसते-बोलते, खाते-पीते, लिखते समय गुज़ार ही रहे हैं। एक बेटा और बेटी हैं, आपको पता है। मेरी भी एक किडनी ख़राब हो रही, डायलिसिस चल रही है। 

“सीधे हाथ से ज़बरदस्ती लिखते रहते हैं, जबकि डॉक्टर ने दिमाग़ पर ज़ोर देने मना किया है।” 

बस एक बात की ओर अक्षरा ने ध्यान दिया कि घर अपनी व्यवस्था ख़ुद ही दिखा रहा था कि ईश्वर ने भरपूर दौलत दी है। एक केयरटेकर अनमोल जी के पास लगातार रहता है। 

अक्षरा ने उनसे वादा किया, “आपकी सब कहानियों की मैं किताब छपवाऊँगी, आपसे मिलकर मेरी नज़रों में आपकी इज़्ज़त में और इज़ाफ़ा हुआ है।” 

अक्षरा और श्रीमान जी दुखी होकर वहाँ से निकल पड़े, जिसका जीवन ही एक कहानी बन चुका हो, वो तो कहानीकार होगा ही!! 

1 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
कहानी
लघुकथा
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में