दुल्हन
भगवती सक्सेना गौड़मुम्बई में नारायण जी के यहाँ बेटे का विवाह था, संयुक्त परिवार था, सुबह हल्ला हुआ, बहुरिया आ गयी। पार्वती ने बहू को परछन करके कार से उतारा। सारा परिवार बहुत ख़ुश था, आख़िर नयी दुल्हन आयी थी।
नारायण जी के बेटे देवेन तीस वर्ष के हो चले थे, नौकरी में व्यस्त रहते थे, कई लड़कियों से बात चली, पर तय नहीं हो रही थी। नारायण जी एक बार अपने छोटे से पुराने क़स्बे में गए और अपने मित्र की लड़की को देखा, अपने बेटे को फ़ोन करके बुलाया और शादी तय कर दी।
अब छोटे से क़स्बे की लड़की दुल्हन बना कर ले तो आये थे, ज़्यादा ख़ूबसूरत भी नहीं थी, प्लस टू ही पास थी।
कॉलोनी में सब पढ़ी-लिखी और अल्ट्रा मॉडर्न बहुएँ ही थीं।
कुछ ही दिनों में उसने पूरे घर को चमका दिया, सुबह से शाम तक कोई न कोई नया काम निकालकर बैठी रहती।
रसोई में भी रोज़ नए व्यंजन बनाकर सबको परोसती रही।
बेटे ने मोबाइल में ऑनलाइन कैसे हर समान मँगाना है, उसे सब समझा दिया। लॉक डाउन लगा तो पूरे कॉलोनी में लोग परेशान रहते थे, “मेड नहीं आती, कैसे काम करें।”
और देवेन की बहू पूरी कॉलोनी में प्रसिद्ध हो गयी, किसी के घर कुछ ख़ास बनाना हो, सिलाई, बुनाई की ज़रूरत हो तो लोग उसे फ़ोन करने लगे।
इसी बीच नारायण जी की तबियत ख़राब हुई, नर्स और बहू दोनों का किरदार उसने बख़ूबी निभाया।
इस दीवाली में नारायण जी बाज़ार से हीरे का सेट लाये और पार्वती से कहा, “जाओ अपनी हीरे जैसी बहू को हीरो का हार पहनाओ।”