हसीन यादें

15-09-2022

हसीन यादें

भगवती सक्सेना गौड़ (अंक: 213, सितम्बर द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

मेधा बहुत ख़ुश थी, आज उसकी परदादी जो उसके घर आ रही थी। बहुत से मेहमान आ चुके थे, मैरिज हॉल में चारों ओर रिश्तेदारों से चहल पहल थी। हो भी क्यों न, परिवार की होनहार बेटी मेधा, नाम के अनुरूप, बहुत बुद्धिमान थी। आज उसकी शादी थी, और कल ही उसके जीवन के राजकुमार उसे घोड़े पर तो नहीं, पर हवाई जहाज़ में उसे विदेश अपने घर लेकर जाने वाले थे। मेधा इंजीनियर बेटी ने स्वयं ही अपने मैनेजिंग डायरेक्टर राजकुमार को जीवन-रूपी स्वयंवर से चुना था। 

दिन भर शोरगुल के बाद होटल में सारे हिन्दू रीति-रिवाज़ से विवाह संपन्न हुआ। 

मेधा ने अपनी मम्मी से कहा, “बड़े दिनों बाद ये एक रात मुझे मिली है, मैं चाहती हूँ, कल यहाँ से विदा होने के पहले आप तीनों पीढ़ी के साथ मम्मी, दादी और परदादी के साथ कुछ वक़्त बिताऊँ, नींद पूरी हो न हो, पर ये नज़ारा पता नही फिर मिले या न मिले।” 

“जरूर बेटू।”

और भोजन के बाद सब एक कमरे में गुफ़्तुगू में लग गए। मम्मी और दादी दोनों से मेधा ने उनके विवाह और विदाई के बारे में बाते की, हँसी-मज़ाक चलता रहा, पर सब एक-सा ही लगा। 

जब परदादी से विनय किया, “कुछ आप भी बताएँ, कैसे आपकी शादी हुई, विदाई हुई, आपको कैसा लगा था।”

“सुनो, रानी बिटिया, मेरी बातें सुनकर तुम हँसोगी, गुड़िया खिलाने की उम्र बारह वर्ष में मेरा विवाह हो गया, घूँघट के ऊपर चादर डाल दी थी कुछ भी दिख नहीं रहा था। बहुत तेज़ ग़ुस्सा आ रहा था, पर बाबूजी से डर लगता था, चुप रही। उस समय गौने का रिवाज़ था। 

“पंद्रह वर्ष में मेरा गौना हुआ, अब तो ज़रूरी था तुम्हारे दादाजी के साथ उनके घर जाना। सिर्फ़ एक ही ख़ुशी थी, पूरे गाँव वालों ने और अम्मा, बाबूजी ने प्यारी सी साड़ियाँ और गहने दिए थे। फिर गला फाड़कर रोते-रोते मैं डोली में बैठी, चार कहार मुझे कंधे पर उठाए चले जा रहे थे, हिलती हुई डोली में थोड़ा डर भी लग रहा था। 
फिर एकाएक एक नदी आयी, नाव बुलाई गई, दूल्हे राजा, कहार और डोली सहित मैं नाव में बैठ गयी, नदी पार करते समय बार-बार लगता, एक बार पानी मेंं हाथ डालकर खेलूँ, पर नहीं अम्मा ने समझाया था, कोई बचपना नहीं करना। नाव से उतरकर ससुराल से आई, रंग-बिरंगी सजी-धजी बैलगाड़ी आयी, जिसमें मैं और तुम्हारे बाबा बैठकर आये; उस समय वो समाँ बहुत प्यारा लग रहा था। और मैं ससुराल पहुँच गयी। 

“तुम्हारे बाबा को एक ट्रांजिस्टर और साइकिल मिली थी, बहुत ख़ुश थे, गाँव में पहली बार लोगों ने ये चीज़ें देखीं थीं, साइकिल रोज़ धो पोंछकर रखी जाती। ट्रांजिस्टर जब बजता, गाँव के कुछ बच्चे पूछने लगते, ‘इसके अंदर कौन आदमी बैठे है जो गाना गाते है, कैसे पहुँचे अंदर।’

“बिटिया रानी, वो समय और आज के जेट युग मेंं कितना अंतर आ गया, मैं बैलगाड़ी में ससुराल आयी, तुम हवाई जहाज़ में जाओगी, जुग जुग जियो, सौभाग्यवती भव।”

उसके बाद सब थके-मांदे थे, नींद लग गयी। सब मधुर यादों के साथ, दूसरे दिन कुछ और सुहाने पलों को जोड़ने चल दी मेधा रानी। 

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