कर्मठ

भगवती सक्सेना गौड़ (अंक: 204, मई प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

अक्षरा जैसे ही ऑफ़िस से आई देखा मम्मा बिस्तर पर सोई हैं। अचानक जाकर सिर पर हाथ रखकर पूछा, “क्या हुआ, ठीक तो हैं।”

तभी दोनों छोटी बच्चियाँ प्रज्ञा और विद्या भी खेलकर आ गयीं, क्या हुआ नानी को? 

70 वर्षीया नानी अभी तक घर बाहर हर तरफ़ अपनी रेस जारी रखती थीं, तलाक़शुदा बेटी नौकरी पर व्यस्त रहती थी। दोनों नातिन प्रज्ञा, विद्या नानी के साथ मस्त रहती थीं। 

घर की हर छोटी–मोटी चीज़ ख़राब होते ही फ़ोन करना, गैस, फ़्रिज, वाशिंग मशीन सब नानी के ही ज़िम्मे था। घर में कोई पुरुष तो था नहीं। बेटी अक्षरा सब जानती थी कि मम्मा ने जवानी में बहुत कष्ट सहा है, पापा चालीस वर्ष के ही थे, और शराब की आदत ने उन्हें खोखला कर दिया और वो स्वर्गवासी हो गए। मम्मा ने कभी किसी से छुपाया नहीं, साफ़ बोला, उनके जाने के बाद मैंने जाना जीवन की ख़ुशियाँ क्या होती हैं। उन्होंने तो पत्नी को ग़ुलाम बना कर रखा था, पर बाद मेंं गजेटेड अफ़सर बेटी ने मुझे हर ख़ुशी दी। 

आज वही अक्षरा की मम्मा बिस्तर पर निढाल पड़ी थी, पता नहीं कैसे, उनकी छठी इन्द्रिय ने उन्हें इत्तला दी। उन्होंने बेटी को बुलाकर कहा, “सुनो, मुझे ऑर्गन्स डोनेट करने हैं, प्लीज़ फ़ोन करो।”

बेटी ने फ़ोन किया। दो ऑफ़िसर्स फ़ॉर्म लेकर घर ही आ गए, बहुत देर तक बैठकर पूछताछ करते रहे, उन्होंने अपनी आँखें, लिवर किडनी सब दान करने का फ़ॉर्म भरवा दिया, किसी तरह सिग्नेचर भी कर दिए। 

थोड़ा बहुत रात मेंं खा कर सोई और सुबह उनकी आँखें नहीं खुली। 

अक्षरा मन ही मन सोच रही थी, जीवन भर मम्मा कर्म करती रहीं, अब उनके अंग भी क्रियाशील ही रहेंगे। 

1 टिप्पणियाँ

  • 4 May, 2022 04:04 PM

    बहुत कम शब्दों में बहुत कहा, बहुत सुंदर

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